स्वयं को बदलो, परिस्थिति को नहीं
धर्म जबसे भागने पर निर्भर हो गया है, तभी से धर्म निष्प्राण हो गया है। जब धर्म वापस बदलने पर निर्भर होगा, तब उसमें फिर पुन: प्राण आएँगे।
इसको स्मरण रखें, आपको अपने को बदलना है, अपनी जगह को नहीं बदलना है। जगह को बदलने का कोई मतलब नहीं है। जगह को बदलने में धोखा है, क्योंकि जगह को बदलने से यह हो सकता है कि आपको कुछ बातें पता न चलें। नए वातावरण में, शांत वातारण में आपको धोखा हो कि आप शांत हो गए हैं।
मैं पुन: कहूँ, साधु जो नहीं सिखा सकते इस जगत में शत्रु सिखा सकते हैं। अगर आप सजग हैं और आपमें सीखने की समझ है, तो आप जिंदगी के हर पत्थर को सीढ़ी बना सकते हैं। और नहीं तो नासमझ, सीढ़ियों को भी पत्थर समझ लेते हैं और उनसे ही रुक जाते हैं
जो शांति प्रतिकूल परिस्थितियों में न टिके, वह कोई शांति नहीं है। इसीलिए जो समझदार हैं, वे प्रतिकूल परिस्थिति में ही शांति को साधते हैं क्योंकि जो प्रतिकूल में साध लेते हैं, अनुकूल में तो उसे हमेशा उपलब्ध कर ही लेते हैं।
इसलिए जीवन से भागने की बात नहीं है। जीवन को परीक्षा समझें। और इसे स्मरण रखें कि आपके आसपास जो लोग हैं, वे सब सहयोगी हैं। वह आदमी भी आपका सहयोगी है जो सुबह आपको गाली दे जाए। उसने एक मौका दिया है आपको। चाहें तो अपने भीर प्रेम को साध सकते हैं। वह आदमी आपका सहयोगी है, जो आप पर क्रोध को प्रकट करे। वह आदमी आपका सहयोगी है, जो आपकी निंदा कर जाए।
वह आदमी आपका सहयोगी है, जो आप पर कीचड़ उछालता हो। वह आदमी भी आपका सहयोगी है, जो आपके रास्ते पर काँटे बिछा दे, क्योंकि वह भी एक मौका है और परीक्षा है। और चाहें उससे पार हो जाएँ, तो आपके मन में उसके प्रति इतना ऋण होगा, जिसका हिसाब नहीं है। साधु जो नहीं सिखा सकते हैं, इस जगत में शत्रु सिखा सकते हैं।
मैं पुन: कहूँ, साधु जो नहीं सिखा सकते इस जगत में शत्रु सिखा सकते हैं। अगर आप सजग हैं और आपमें सीखने की समझ है, तो आप जिंदगी के हर पत्थर को सीढ़ी बना सकते हैं। और नहीं तो नासमझ, सीढ़ियों को भी पत्थर समझ लेते हैं और उनसे ही रुक जाते हैं। अन्यथा हर पत्थर सीढ़ी हो सकता है। अगर समझ हो। अगर समझ हो तो हर पत्थर सीढ़ी हो सकता है।
इस पर थोड़ा विचार करें। आपको अपने घर में, परिवार में जो-जो बातें पत्थर मालूम होती हों कि इनकी वजह से मैं शांत नहीं हो पाता, उन्हीं को साधना का केंद्र बनाएँ और देखें कि वे ही आपको शांत होने में सहयोगी हो जाएँगी। कौन-सी बात आपको रोकती है? जो बात आपको रोकती हो, जरा विचार करें, क्या कोई रास्ता उसे सीढ़ी बनाने का हो सकता है? बराबर रास्ते हो सकते हैं। और अगर विचार करेंगे और विवेक करेंगे, तो रास्ता दिखाई पड़ेगा।
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